स्वदेशविचार-नई दिल्ली(०७/०८): निर्मोही अखाड़े के दस्तावेज और सबूत 1982 में डकैत ले गए. ये बात निर्मोही अखाड़े के वकील ने अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कही. अखाड़े के वकील ने यह बात कोर्ट में तब बताई जब चीफ जस्टिस ने अखाड़ा से कहा कि वह सरकार द्वारा 1949 में ज़मीन का अटैचमेंट करने से पहले के जमीन के मालिकाना हक को दर्शाने वाले दस्तावेज, राजस्व रिकॉर्ड या अन्य कोई सबूत कोर्ट के समक्ष पेश करे.
निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि इस मामले में वे असहाय हैं. वर्ष 1982 में अखाड़े में एक डकैती हुई थी. जिसमें उन्होंने उस समय पैसे के साथ उक्त दस्तावेजों को भी खो दिया था. इस पर चीफ जस्टिस (CJI) ने पूछा- क्या अन्य सबूत जुटाने के लिए केस से जुड़े दस्तावेजों में फेरबदल किया गया था?
इससे पहले जस्टिस बोबड़े ने पूछा- क्या निर्मोही अखाड़े को सेक्शन 145 सीआरपीसी के तहत राम जन्म भूमि पर दिसंबर 1949 के सरकार के अधिग्रहण के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है? ऐसा इसलिए क्योंकि निर्मोही अखाड़े ने इस आदेश को क़ानून में तय अवधि समाप्त होने के बाद निचली अदालत में चुनौती दी थी. दरअसल अखाड़ा ने तय अवधि (6 साल) समाप्त होने पर 1959 में आदेश को चुनौती दी थी. इस पर अखाड़ा ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 1949 में सरकार का अटैचमेंट ऑर्डर था और उस ऑर्डर के ख़िलाफ़ मामला 1959 तक निचली अदालत में लंबित था. लिहाजा 1959 में निर्मोही अखाड़े ने निचली कोर्ट में अपनी याचिका दायर की थी.
उल्लेखनीय है कि राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट में छह अगस्त से नियमित सुनवाई शुरू हुई है. 18 पक्षकारों में सबसे पहले निर्मोही अखाड़ा अपना पक्ष रख रहा है. इस कड़ी में लगातार दूसरे दिन सुनवाई में निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन की बहस जारी रही.
पहले दिन की सुनवाई
इससे पहले मंगलवार को जब पहले दिन की सुनवाई हुई तो निर्मोही अखाड़े के वकील ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल पर 1934 में 5 वक्त की नमाज बंद हुई. हर शुक्रवार सिर्फ जुमे की नमाज होती रही है. 16 दिसंबर 1949 के बाद से ये भी बंद हो गई. विवादित स्थान पर वुज़ू (नमाज से पहले हाथ, पैर आदि धोने) की जगह मौजूद नहीं है.
सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन के हस्तक्षेप करने पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई. कहा कोर्ट कि मर्यादा का ख्याल रखें. सीजेआई ने कहा कि कोर्ट आपका पक्ष भी सुनेगा. धवन का कहना था कि शक है कि हमें पर्याप्त समय मिलेगा. सीजेआई ने कहा कि ये कोर्ट में बर्ताव करने का सही तरीका नहीं है.
जैन ने कहा- विवादित परिसर के अंदरूनी हिस्से पर पहले हमारा कब्ज़ा था जिसे दूसरे ने बलपूर्वक कब्ज़े में ले लिया. बाहरी पर पहले विवाद नहीं था. 1961 से शुरू हुआ. जैन ने कहा- मेरा केस दरअसल ज़मीन के उस टुकड़े के लिए है, जो अभी कोर्ट द्वारा नियुक्त रिसीवर के नियंत्रण में है.
मध्यस्थता पैनल भंग
इससे पहले अयोध्या पर मध्यस्थता विफल होने के बाद दो अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने मध्यस्थता पैनल को भंग कर दिया था और 6 अगस्त से खुली अदालत में रोज़ाना सुनवाई शुरू करने का निर्णय लिया था. मामले का 17 नवंबर 2019 तक फ़ैसला आने की उम्मीद है.
35 दिन अहम
चीफ जस्टिस 17 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं. उनके रिटायर होने तक यानी फ़ैसला आने तक सुप्रीम कोर्ट के पास इस मामले को सुनने के लिए कुल 35 दिन का समय है. ये 35 दिन Non Miscellaneous Day हैं जोकि हर हफ़्ते में मंगलवार, बुधवार और गुरूवार होते हैं जिनमें सुप्रीम कोर्ट रेगुलर केस यानी कि पुराने नियमित मामलों की सुनवाई करता है. सोमवार और शुक्रवार के दिन Miscellaneous Day होते हैं जिनमें नए मामलों की सुनवाई होती है. 6 अगस्त से चीफ जस्टिस के रिटायरमेंट के दिन 17 नवंबर 2019 तक शनिवार, रविवार और अन्य अवकाश के दिनों को हटाकर सुनवाई के 35 दिन है. इन दिनों में सुनवाई भी होनी है और फ़ैसला भी लिखा जाना है.