50 सीटों पर होगा फोकस-यूपी में जीत के लिए भाजपा बना रही ‘खास प्लान

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2019 चुनाव से पहले भाजपा को उत्तरप्रदेश में एक के बाद एक तीन उपचुनाव में मिली हार ने उसके माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं. खासकर गोरखपुर और कैराना में मिली हार के बाद तो भाजपा की रणनीति पर ही सवाल उठ खड़े हुए हैं. पश्चिम यूपी में जिस तरह 2014 में भाजपा को कामयाबी मिली थी, वह इस बार विपक्षी एकता के सामने घुटने टेकती दिखाई दी. अब सवाल उठता है कि भाजपा यूपी में 2014 वाला प्रदर्शन कैसे दोहराएगी. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों से जो खबरें आ रही हैं, उसके अनुसार, भाजपा को भी यह अहसास है कि अब यह संभव नहीं है. इसलिए अब भाजपा अपना प्लान बदलने जा रही है.

भाजपा को पता है कि 80 में से 71 सीटें जीतने का करिश्मा अब शायद ही दोहराया जा सके. ऐसे में उसने अपना टारगेट घटाकर 50 के आसपास कर लिया है. द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा मानती है कि अगर वह 50 सीटों के आसपास भी रह जाती है तो ये उसके लिए अच्छा होगा. साथ ही किसी दूसरी पार्टी को यूपी में 10 -15 सीटों से ज्यादा नहीं मिलेंगी. पार्टी नेता मानते हैं कि कि अगर यूपी से उसे 20 सीटें कम मिलीं, तो इसकी भरपाई वह दक्षिण और नॉर्थ ईस्ट को मिलाकर पूरा कर सकते हैं.

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हाल में कैराना और नूरपुर में जिस तरह से सपा, आरएलडी, बसपा और कांग्रेस की एकता के कारण भाजपा को झटका लगा है, उसके कारण उसे अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना पड़ रहा है. 2014 में अगर भाजपा अपने दम पर बहुमत पा सकी थी तो इसका सबसे बड़ा कारण यूपी में मिली उसकी कामयाबी ही थी. लेकिन अब विपक्ष के साथ आने से उसे सबसे बड़ा संकट दिख रहा है.भाजपा को लगता है कि वह कैराना में वोटों का अंतर पाट सकती है. 2014 में उसे 5,65,909 वोट मिले थे. इस बार के उपचुनाव में उसे 4,36,564 वोट मिले. वहीं विपक्ष की बात करें तो उसे 5,32,201 वोट मिले थे. (इसमें सपा, बसपा और आरएलडी के वोट शामिल हैं. कांग्रेस के नहीं). वहीं इस उपचुनाव में उसे 4,81,182 वोट मिले. कैराना में भले उसका वोट शेयर गिर गया हो, लेकिन वह अपने दम पर भी 46.5 फीसदी वोट पा गई.2019 के चुनाव में भाजपा अपने कोर वोटर पर फोकस करेगी. इन उपचुनावों में भी तमाम मुद्दों के बावजूद उसे उसके पारंपरिक वोटराें का साथ मिला है. पार्टी ये भी मानती है कि बड़ी मात्रा में उसके वोटर इन उपचुनावों में वोट देने के लिए नहीं निकले. इन सभी उपचुनावों में पिछले चुनावों के मुकाबले कम वोट पड़े. कैराना में ही 2014 के मुकाबले इस चुनाव में 18 फीसदी कम वोटिंग हुई. इस बार 54 फीसदी लोग ही वोट देने के लिए निकले. ऐसा ही हाल नूरपुर का रहा. वहां पर 2017 विधानसभा चुनावों के मुकाबले कम वोटिंग हुई.

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