नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। दो दिन पहले आए उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा के लिए बाहर ही नहीं अंदर भी परेशानी खड़ी कर दी है। राजग के घटक दल इसे अपनी उपयोगिता बढ़ने के तौर पर देख रहे हैं और इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले समय में उनकी ओर से थोड़ा दबाव भी बढ़ेगा। हालांकि, वे तीन राज्यों के चुनाव के बाद ही अपनी रणनीति तय करेंगे। वहीं भाजपा की ओर से संवाद प्रक्रिया तेज होगी।
उपचुनावों में लगातार मिल रही हार को भाजपा 2019 के चुनाव से जोड़कर नहीं देख रही है, लेकिन सहयोगी दल अपना महत्व बढ़ाने के लिहाज से इसमें खुद के लिए अवसर देख रहे हैं। खासकर तब जबकि विपक्षी खेमा मजबूत होने का दावा कर रहा है और इसके कारण भाजपा को झटका भी लगा है। यह स्थिति बिहार और उत्तर प्रदेश से जहां सीधे तौर पर जुड़ती है, वहीं महाराष्ट्र में इसे संभावना के तौर पर भी तलाशा जा रहा है। उत्तर प्रदेश में भारतीय समाज पार्टी, अपना दल जैसे दलों में बेचैनी है कि उन्हें शायद पिछली बार की तरह सीटें न मिले। वहीं बिहार में जदयू के साथ गठबंधन के बाद सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान अवश्यंभावी है।